Friday, October 23

"कसक "


अप्रतिम सौंदर्य से इठलाती है फुलवारी
रक्ताभ पंखुडियों से सजी है जिसकी क्यारी क्यारी
पूर्ण सुरभित है माहौल महक से
फिर क्यूँ कराहे कोई तड़प से .....!

ज़रा सुनूँ नाद यह किसका ?
दर्द भरा रुदन यह जिसका
रुदन में जिसके तीखा है स्वर
यह तो एक पुष्प है बर्बर ...

करे सवाल वह गुलाब से
क्यूँ करे तू छलनी इन काँटों से ?
गुलाब कहे तू कर ले शिकवा
हक़ लिया है तुने इसका

व्यथा अपनी कहूँ मैं किससे
काँटों भरा है जीवन जिसका
छलनी मैं भी तो होता हूँ
अपने ही जीवन अंशों से
पर दूर कभी न जाऊंगा
डरकर के इन दंशो से...

छिपा मर्म जो बतलाया
एक आंसूं भी संग हो आया
आंसू भी तो कसक थी दिल की
शबनम बनकर संग हो गयी
सहर्ष साझेदार हो गयी
मादकता के अनुभव की ....

6 comments:

के सी said...

आपके पहले शब्द सी ही है कविता "अप्रतिम"
कई सुंदर बिम्ब है जो जीवन के सहज क्षणों को रूपायित करते हैं, आप अच्छा लिखती हैं, बधाई !

डॉ.ब्रजेश शर्मा said...

व्यथा अपनी कहूँ मैं किससे
काँटों भरा है जीवन जिसका
छलनी मैं भी तो होता हूँ
अपने ही जीवन अंशों से
पर दूर कभी न जाऊंगा
डरकर के इन दंशो से... ..

आपकी कोशिश इमानदार है ......
शिल्प की अनगढ़ता भी है तो दूसरी ओर भाव को , अनुभूति को पकड़ने की
तीव्र बैचैनी भी स्पस्ट नज़र आती है
अच्छा लिखने के लिए अच्छा पढना बेहद ज़रूरी है
बहरहाल कोशिश करती रहिये ...........शुभकामनाएं !

किरण राजपुरोहित नितिला said...

atisundar!
bahut badhiya .apne shabdo ko kaha chupa kar rakhti ho.

डॉ.ब्रजेश शर्मा said...

arre kya hua, likhna ruk kyon gaya ?

S.N SHUKLA said...

बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति , बधाई.

.

कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .

KULDEEP SINGH said...

आप अच्छा लिखती हैं, बधाई !.शुभकामनाएं !